Manu Kahin

मुक्तिधाम

यह वो जगह है जहां सभी आपको गहरी नींद में सोए हुए मिलते हैं। ऐसा लगता है मानों सभी को अभी अभी गहरी नींद आई है। दिनभर की मेहनत मशक्कत के बाद सभी अपने सारे घोड़े बेचकर दिन दुनिया से बेखबर सोए हुए हैं। किसी बात की कोई फ़िक्र नहीं। आस-पास की दुनिया से बिल्कुल बेखबर।

 यह नज़ारा आपको अमुमन दिखाई दे जाएगा मुक्तिधाम, बैकुंठधाम, गोलोकधाम या फिर किसी भी नाम से पुकार लें। यहां सभी अपने सोए हुए लोगों को आवाज़ देकर उठाने नहीं बल्कि उन्हें इस नश्वर संसार से विदा करने आए हुए हैं।

आत्मा तो इस नश्वर शरीर से कब का विदा ले चुकी है। बस एक औपचारिकता बची है और हम सभी उस औपचारिकता को निभाने यहां एकत्रित हुए हैं।

 जब आत्मा आपके शरीर से निकल कर किसी और के शरीर में प्रविष्ट कर जाती है , अब आप, आप न होकर सिर्फ और सिर्फ एक मृत शरीर हो जाते हैं। तब आप और हम पहुंचते हैं, मुक्तिधाम। आप इसका नामकरण कुछ भी कर लें- मुक्तिधाम, बैकुंठधाम या फिर गोलोकधाम।

मुझे आज़ भी याद है बचपन के उन दिनों की बातें। मुझे क्या, अमुमन पटना में रहने वाले लगभग सभी लोग इसे जानते हैं। उस वक़्त अंत्येष्टि स्थल को सभी बांस घाट के नाम से जानते थे। गंगा नदी के किनारे बसा पटना शहर और उस शहर में अन्य कई घाटों के बीच एक घाट जहां मनुष्य का अंतिम संस्कार किया जाता था। आमतौर पर बच्चों को वहां नही ले जाया जाता था। महिलाओं का प्रवेश तो बिल्कुल ही वर्जित था। आज़ परिस्थितियां काफ़ी बदल गयीं हैं। 

 बांस घाट एक पर्याय बन चुका था। खैर! आज़ भी है। आज़ हम और आप अंत्येष्टि स्थल का चाहे जो नाम रख लें पर, ज़ेहन में आज़ भी बांस घाट ही है। लगभग सभी छोटे बड़े शहरों में यही स्थिति है।

यह वो जगह है, जहां आप और हम सभी बंधनों से मुक्त हो, जाते हैं। आप बिल्कुल निश्चिन्त हैं। तमाम तरह के उधेड़बुन से दूर, बहुत दूर।आपका खुद का शरीर जिसे आपने बड़े जतन से पाला पोसा है एक पल में ही मिट्टी में मिल जाता है। मन के सारे क्लेश विकार खत्म हो जाते हैं। मिट्टी का बना यह शरीर मिट्टी में मिल जाता है। आत्मा आपके शरीर से निकलकर किसी और के शरीर में प्रविष्ट कर जाती है। किसी की मृत्यु होती है तो किसी का जन्म होता है। यही तो प्रकृति का शाश्वत नियम है । शरीर नश्वर है पर, आत्मा अजर अमर है।

सृष्टि की एकमात्र सच्चाई बयां करता एक स्थान। मनुष्य की सारी की सारी प्लानिंग बस यहीं की यहीं धरी की धरी रह जाती है। आप बहुत ताकतवर रहे हों, कोई फ़र्क नहीं पड़ता। सब मन का भ्रम है। व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ भ्रम में जीता है। आप भी यहां पर औरों की तरह ही बिल्कुल निश्चिन्त भाव से चिर निद्रा में सोए हुए हैं।बस, मृत्यु ही एकमात्र सच है, मान लें। बाकी सब मिथ्या है, मृगतृष्णा है। हम सभी इसी मृगतृष्णा में जी रहे हैं। पल भर में सब कुछ बदल जाता है और हम हैं कि समझना ही नही चाहते हैं। नही, समझते तो हम हैं! इतने अज्ञानी भी नही हैं हम। पर, क्या करें दर्शाना नही चाहते। पर, क्या आपके दर्शाने और न दर्शाने से कोई फ़र्क पड़ने वाला है। बिल्कुल नहीं! सच के साथ यही तो एक समस्या है, बदलना ही नही चाहती है। जीवन जीने के वास्ते सभी को एक तय समय मिला हुआ है। सभी के अंदर एक चाभी भरी हुई है। कुछ अच्छी यादों को छोड़ जाएं। बस, वही आपके बाद रह जाएगी।

मनु कहिन

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