विजय ठाकुर उर्फ़ बाबा उर्फ़ सांई बाबा। जी हां, यही नाम तो उन्होंने बताया अपना। बिल्कुल सफ़ेद हो चुके दाढ़ी बाल। चेहरे पर दाढ़ी और सर को सफ़ेद रूमाल से यूं ढंका रखना मानो ऐसा लगता है सांई बाबा की प्रतिमूर्ति सामने खड़ी हो। शायद इसलिए ही लोगों ने उन्हें सांई बाबा कहना शुरू किया हो। उम्र लगभग 70-72 वर्ष के बीच।
ये पहले पटना के एक प्रतिष्ठित वामपंथी विचारधारा से प्रभावित प्रेस ‘ जनशक्ति ‘ में काम किया करते थे। फ़िलहाल, शहर के एक नामचीन निजी अस्पताल के सामने मसालेदार नींबू की चाय लोगों को पिलाते हैं। साफ़ सुथरा स्टील के कंटेनर में चाय, प्रथमदृष्टया ही इन्हें अन्य चाय बेचने वाले से अलग करता है, जो पुराने समय की बत्ती वाली स्टोव, जो फिलहाल प्रचलन में नही है, उसके ऊपर गर्म पानी की केतली रख लोगों को घूम-घूम कर चाय पिलाते हैं।
विगत के कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि चाय के मामले में पटना के लोगों का स्वाद बहुत कुछ बदला है। बाज़ार में चाय के प्रयोग भी शुरू हुए हैं। खैर!
आम से बाबा थोड़ा हटकर दिखे तो जिज्ञासावश उनसे थोड़ी बात करने की इच्छा हुई। बातें करने का तरीका बिल्कुल सहज और सरल। आत्मीयता से भरा हुआ। उम्र के इस पड़ाव पर किसी से कोई शिकायत नही। किसी भी प्रकार का कोई गिला शिकवा नहीं। न ही किसी से उम्मीदें। चाय पिलाने के बाद किसी से पैसा भी नहीं मांगना। अगर सामने वाले ने पूछ लिया तो ठीक, नहीं तो पैसा मांगना नही है।
कोराना काल ने इन्हें भी थोड़ा मजबूर किया। लगी लगाई रोज़गार छूट जाने के बाद अब मसालेदार नींबू की चाय लोगों को पिलाते हैं। मसाला ख़ुद का तैयार किया हुआ। अमुमन लोगों को देखा है अपने ट्रेड सिक्रेट्स को न बताते हुए।पर, ये अपवाद हैं। खुलकर बातें करते हैं। बढ़िया नींबू की चाय। अंतिम घूंट तक मज़ेदार और दमदार।
किसी ने सच ही कहा था ” मैं चिल्लाया, मेरे पैरों में जूते नही थे। पर, जब मैंने देखा मेरे सामने वाले व्यक्ति के दोनों पैर नही थे। मैं अपना दर्द भूल गया”।
बमुश्किल घूम-घूम कर दो जून की रोटी की व्यवस्था करने वाला एक शख़्स जिंदगी का फ़लसफ़ा बता गया। मनु को आत्मनिरिक्षण का अहसास करा गया।
बाबा@ सांई बाबा@ विजय ठाकुर।
मनु कहिन