“Judge Sets Unusual Bail Condition”
एक ख़बर जो बड़ी ही तेज़ी से फैलती हुई स्थानीय अख़बारों की सुर्खियों के साथ ही साथ देश के कई प्रतिष्ठित अख़बारों की भी सुर्खियां बन गई है। मामला जुड़ा है, बिहार के मधुबनी जिले से । यह बिहार का वही जिला है जहां की पेंटिंग विश्व विख्यात है। जी हां! हम बात कर रहे हैं- मिथिला पेंटिंग की। विश्वव्यापी पहचान है मिथिला पेंटिंग और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की। विद्वत्ता तो जैसे यहां कण कण में समायी हुई है। इसी मिथिला की धरती पर शंकराचार्य को हार स्वीकार करना पड़ा था।
इसी मिथिला की धरती पर, यहां की एक स्थानीय अदालत के जज साहब ने दुष्कर्म के आरोपी एक युवक, जो पेशे से धोबी था, को इस शर्त के साथ ज़मानत दिया कि वह युवक आनेवाले छः महीने तक संबंधित गांव, जहां यह घटना हुई है वहां की सारी महिलाओं के कपड़ों को आरोपी धोएगा, सुखाएगा और उसे इस्त्री कर महिलाओं को देगा। यह सारा काम आरोपी बिना किसी पैसे के यानि मुफ़्त में करेगा। जी हां! पुरी तरह निशुल्क सेवा। उसके इस काम को गांव के मुखिया या कोई अन्य प्रतिष्ठित लोक सेवक सत्यापित करेंगे।उसे इस बात का एक प्रमाण पत्र देंगे।
ऐसा नही करने की स्थिति में उसकी ज़मानत रद्द की जा सकती है। उसे दोबारा जेल भेज दिया जाएगा।
कहने को तो यह एक न्यायिक फैसला है। माननीय न्यायाधीश ने अपने इस आदेश को काफ़ी सोच समझकर, अपने स्वविवेक से इसे पारित किया होगा। सच भी है। प्रथमदृष्टया, यह मामला एक नज़ीर बनता दिख रहा है। है भी, और होना भी चाहिए। ज़रूरी नही कि सारे अपराध की सज़ा जेल के अंदर ही काटी जाए। जेल मे किसी अपराध के लिए अपराधी को रखना आम तौर पर मेरे विचार से उसे समाज से अलग रखना होता है। पर, यहां वह व्यक्ति अपने अपराध की सज़ा उसी समाज मे रहकर काटेगा जिस समाज का वह भी एक हिस्सा है। ज़्यादा मुश्किल है इस तरह के सज़ा को काटना।
पर शायद, हमलोग इस सज़ा में अंतर्निहित पहलुओं को नही देख पा रहे हैं। माननीय ने अपनी दृष्टिकोण को आम जनता की सोच से थोड़ा परे जाकर इस तरह का आदेश पारित किया है। उनकी सोच कहीं दूर जाकर ठहरती है।
जरा सोचिए ! आरोपी ने जो अपराध किया है, किसके साथ किया है ? पीड़ित पक्ष कौन है? महिला! और अपराधी को अपराध की सज़ा क्या मिली ? पीड़िता को तो खैर, फिलहाल छोड़ ही दिया जाए। आरोपी ने , जिसने महिला को कमज़ोर मानकर उसके साथ जोर जबरदस्ती किया। उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की। अब आरोपी संबंधित गांव की तमाम महिलाओं के कपड़े धोएगा, उसे सुखाएगा और उसे इस्त्री करने के बाद उन्हीं महिलाओं को देगा जिसे उसने कभी कमज़ोर समझा था। जोर जबरदस्ती किया था। कहां रहा उसका अहंकार। कहां रही उसकी ताक़त। एक झुठा दंभ जो पुरुष वर्चस्व को बताता है। किसी को कमजोर समझने की भूल करता है। सब कुछ पानी-पानी हो गया। जिंदगी भर उसे अपने किए पर पछतावा रहेगा। नज़रें ताजिंदगी उसकी झुकी रहेगी।
बाकियों जो इस तरह की मानसिकता रखते हैं उनके लिए भी एक सबक है। जेल की सज़ा तो आप अपनों से दूर रहकर काटते हैं।पर, यहां तो आप अपनों के बीच, अपने परिवार के बीच रहकर सज़ा काटेंगे। शायद यह सज़ा जेल की सलाखों के पीछे काटी जाने वाली सज़ा से कुछ नहीं, बहुत ज़्यादा कष्टकर है।
जज साहब के फैसले को जानकर एक लगभग पचास साल पहले की एक फिल्म की कहानी याद आ गई।
सन् 1972 मे राजेश खन्ना अभिनित एक फ़िल्म आई थी – दुश्मन। इस फ़िल्म में दुश्मन @ सुरजीत सिंह की भूमिका उस वक्त के सुपरस्टार रहे राजेश खन्ना ने निभाई थी। फ़िल्म में नशे की हालत मे ट्रक चलाते हुए राजेश खन्ना @ सुरजीत सिंह के द्वारा एक किसान रामदीन मारा जाता है। इस मामले में जज साहब ने एक बड़ा ही अनोखा फैसला सुनाया था। उन्होंने सज़ा की अवधि दो साल के दौरान सुरजीत सिंह को जेल न भेज कर रामदीन के परिवार की देखभाल करने को कहा। उस वक्त के हिसाब से बड़ा ही अनोखा फैसला था। जेल जाकर सज़ा काटने से भी बदतर।
खैर! हम वर्तमान मामले में सज़ा के अनोखेपन और उसके विभिन्न आयामों की बातें कर रहे हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या और साथ ही साथ अपराधों में हुई बढ़ोतरी की वज़ह से जेलों में कैदियों को रख पाना मुश्किल हो रहा है। मानवाधिकार हनन के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में हमारे माननीयों के द्वारा इस तरह के फैसले को देना कहीं न कहीं हितकारी और उद्देश्य पुर्ण भी। आप आलोचक की दृष्टि से न देखें और थोड़ा नज़रिया बदल लें। आपको इस फ़ैसले की सार्थकता समझ आ जाएगी।
इस तरह के फैसले हमेशा से ही सामाजिक सरोकार से जुड़े होते हैं। कहीं न कहीं आप सीधे ही न चाहते हुए भी लोगों से सीधा संवाद स्थापित कर लेते हैं। इस तरह के फैसले समय की मांग हैं। ज़मानत न देकर आप मुजरिम को कुछ दिन और जेल में रखते। क्या फ़र्क पड़ता? सुधर जाता वो ? शायद नहीं! खूंखार कैदियों के बीच रहकर वो शायद कुछ और ही बनकर बाहर आता, जो शायद समाज के लिए सही नहीं होता। समाज और परिवार के बीच रहकर सज़ा काटना बहुत ही मुश्किल है। कुछ नजरें हमेशा आपको बेधती रहेंगी। आप हमेशा उससे नजरें छुपाने की कोशिश करेंगे।
आपराधिक मानसिकता वाले बाकियों के लिए एक नज़ीर और सबक बनेगा यह फैसला। एक तीर से कई शिकार।
अपराध कम करने की जरूरत है। लगे हाथों गांव वाले स्वच्छता का पाठ भी पढ़ेंगे। कम से कम गांव की आधी आबादी तो छः महीने तक बिल्कुल मुफ़्त में साफ़ सुथरा धुलाई और इस्त्री किया हुआ कपड़ा पहनेंगी। आदत लगने के लिए काफ़ी है।
मनु कहिन