Manu Kahin

रविवारीय: ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है! 

ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है!
मुर्दा – दिल ख़ाक जिया करते हैं!!

जी हां ! जनाब, इमाम बख़्श नासिख़ साहब ने क्या खूब कहा है!

सरहदों और सीमाओं से परे ज़िंदगी जीने की कोशिश करें। भला, जीवन की मौजे कहां सरहदें और सीमाएं मानती हैं। जीवन प्रकृति की अनुपम देन है। इसे खुलकर जिएं। बताइए भला , हमें हंसने के लिए भी सोचना पड़ता है। अहले सुबह पार्क में कुछ समय के लिए हम हंसते हैं।

दरअसल हम हंस नहीं रहे होते। हमें तो हंसाया जाता है । यही वास्तविकता है। किसे इच्छा नहीं होती है दोस्तों के साथ या फिर अकेले ही सड़कों पर घूमते हुए जब मन चाहा, गोलगप्पे खा लिए। कहीं से मूंगफली खरीद खा लिया। तो कभी लगे आइस गोला की चुस्कियां लेने। जहां मन किया बैठ गए। कभी मन किया तो अकेले या दोस्तों के साथ लंबी दूरी के वॉक पर निकल पड़े । न तो जिंदगी को अवकाश प्राप्ति के दायरे में लाने की कोशिश करें और न ही अपने आप को सेलिब्रिटी मटेरियल बनाएं। उम्र के बारे में तो बिल्कुल ही न सोचें। यह तो महज़ नंबरों का खेल है। ज़िंदगी एक सफ़र है और मौत एक सत्य और प्रारब्ध। फिर चिंता किस बात की?

आप बड़ी से बड़ी और महंगी गाड़ियों में चलते हैं। गाड़ियों का कद जैसे जैसे आप बढ़ाते जाएंगे आपके बारे में लोगों का शायद परसेप्शन बदले पर इन सभी चीजों से सच्चाई नहीं बदला करती है मेरे दोस्त ।

सिर्फ गाड़ियां ही क्यों? आप अपनी जीवनशैली को चाहे कितना आगे ले जाएं लोगों का आपको देखने का नज़रिया बदल सकता है, पर शायद कहीं ना कहीं आपकी आजादी में खलल है यह सब। महंगी गाड़ियां एवं उच्च जीवन शैली आपका समाज में कद जरूर बढ़ा सकती हैं, पर आपको लोगों से जोड़ नहीं सकती हैं और न ही आपको अकेलेपन से बचा सकती है।

एक समय के बाद वैसे लोग समाज में बड़े ही अलग-थलग पड़ जातें हैं जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी एक दायरे में बिताने की कोशिश की है। कट गए हैं समाज से वो। आज चाहकर भी अपने आप को जोड़ नहीं पा रहे हैं।

आप खुलकर नहीं जी सकते हैं। खुल कर जीना है तो खुद को लोगों से जोड़ने की कोशिश करें। अपने आपको सरहदों, सीमाओं और तमाम तरह के दायरों से मुक्त रखने की कोशिश करें। जीवन एक नौकरी नहीं है, जहां आप अपने दिन का एक तिहाई हिस्सा एक दायरे में गुजारते हैं। कंडक्ट रूल से बंधे हैं, और न ही जिंदगी मेरे दोस्त एक सेलिब्रिटी स्टेटस है। अगर आप अपने आपको इन दायरों से, मुक्त नहीं कर सकते तो आप महज़ एक गुलाम, एक कैदी की जिंदगी जी रहे हैं, बिल्कुल कारागार के अंडा सेल की तरह यहां आपको लोगों से दूर रखा जाता है। पर, दुर्भाग्यवश यह रास्ता तो आपने खुद चुना है।

कुछ समय के बाद आप बिल्कुल अकेला हो जाएंगे। तमाम उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद हैं कि जब व्यक्ति एक पोजीशन के बाद अवकाश प्राप्त करता है और पूरी जिंदगी लोगों से नहीं जुड़ा है, दूरियां बनाई है तो बाद में जिंदगी कैसी हो जाती है? सेलिब्रिटीज के मामले में भी अक्सर ऐसा ही होता है । यह एक चीज है जो क्षणिक होती है। स्थाई नहीं है। फिर क्यों आप और हम सभी इसके गुलाम बने बैठे हैं?

इसलिए मेरा तो मानना है, मेरे दोस्त, जिंदगी को अपने तरीके से तमाम तरह के दायरों और सीमाओं से परे जीएं। ज़िंदगी के एक-एक पल का मजा लें। भरपूर लुत्फ उठाएं जिंदगी का। बाद की दुनिया किसने देखी है। सब यहीं है। जब मन करे, जहां मन करे घूमें। लोगों से व्यक्तिगत होकर जुड़े। ना अपने आप को दायरों में रखें और ना ही उन्हें।

 – मनीश वर्मा ‘मनु’

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