पुनः कछुआ ही जीता । बचपन की कहानी फिर से दुहराई गई।
पर! इस मर्तबा उसने खरगोश को नहीं, शेर को चित किया। और वह भी एक नही पूरे तीन। उन्हें मात दी!
कछुए और खरगोश की कहानी तो हमने बचपन में सुनी थी। सच्चाई क्या थी न मालूम है न कभी जानने की कोशिश की। इसे नैतिक शिक्षा मान कर अपने ज़ेहन में, अपने जीवन में उतार लिया। Perseverance की जिंदगी में कितनी ज़रूरत है हमलोगों ने जाना।
पर, यहां कछुए ने शेर को नहीं शेरों को पटखनी दे दी। सच्ची घटना है । कहानी नहीं कह सकते।
वाक्या कुछ यूं था। गिर के जंगलों में तीन शेरों का दल वहां के कमलेश्वर बांध क्षेत्र की ओर जा रहा था। तभी एक शेर ने रास्ते में जाते हुए एक कछुए को मुंह में दबोच लिया। बेचारा कछुआ। अब क्या कर सकता है। देखिए! बांध तट से थोड़ी दूर आगे ले जाकर उस शेर ने कछुए का शिकार करने की कोशिश की। पर, कछुए ने बड़े ही बुद्धिमता से अपने कुदरती ढाल में खुद को समेटे लिया ।
काफी कोशिश और जद्दोजहद के बावजूद शेर कछुए का जो प्राकृतिक कवच होता है उसे खोलने में नाकामयाब रहा । इसके बाद दो शेर और जो उस शेर के साथ थे, उन्होंने भी कछुए का शिकार करने की कोशिश की। कछुए के प्राकृतिक ढाल को तोड़ने की कोशिश की । पर ! बात नहीं बननी थी सो नहीं बनी। तीनों मुंह लटका कर चलते बने । एक बार तो कहानियों में कछुए ने खरगोश को हराया था । पर, इस बार तो उसने जंगल के राजा और वह भी एक नही तीन थे वे। उन्हें परास्त किया।
खतरा टल चुका था। अब कछुए ने अपने आप को अपने कोकून से बाहर निकाला और अपनी राह चल दिया।
वाह! एक बार फ़िर जीवंत हुई कछुए के जीतने की बात।
मनीश वर्मा ‘मनु’