Manu Kahin

बड़े साहब

बड़े साहब की गाड़ी रोज़ की सुबह होनेवाली ट्राफिक जाम में फंस गई। दफ्तर पहुंचने में साहब को देर तो होनी ही थी । सो हो गई। बात दिल को छू गई। वर्दीधारी अंगरक्षक और  ड्राइवर के रहने के बाद भी, बड़े साहब की गाड़ी रूक गई। हालांकि आम आदमी के लिए यह रोज़ की बात थी। उसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लिया था।

खैर! मामले में संज्ञान लिया जाना लाज़िमी था। सो लिया गया। प्रशासन में उच्च पदस्थ पदाधिकारी जो ट्राफिक सुचारू रूप से चले इसके लिए  जिम्मेवार थे , तलब किए गए। 

जाम तो रोज़ का मसला था। ऐसी बात नहीं कि वह आज़ ही लगा। हां ! यह बात दीगर है कि आज़ ट्राफिक जाम का दंश बड़े साहब को भुगतना पड़ा। बेचारा आम आदमी तो रोजाना इन चीजों से दो चार होता है। उसे कहां कोई फ़र्क पड़ता है। उसने तो बड़े आराम से यह मान लिया है और अपने दिल को मना भी लिया है। 

भाई, इस समस्या का कोई स्थाई हल नहीं है। समाधान जहां पर है हम चाहकर भी अपनी नज़र वहां नहीं ले जा सकते हैं। मजबूरी है हमारी।

खैर! बड़े साहब की बात थी। तलब किए जाने पर अपनी ओर से सिर्फ और सिर्फ हां में ही सर हिलाना था। कुछ नहीं बोलना था। सिवाए ‘जी सर’ के। गाड़ी रूक गयी थी। आप समझें नहीं ! समय थम गया था , कुछ देर के लिए।जो वक्त कभी रूकता नहीं है आज़ रूक गया। इतनी बड़ी बात हो गई और आप चाहते हैं कि हम कुछ न कहें। बिल्कुल नहीं साहब!

सारे लोगों ने मिलकर एक साथ उन्हें भरोसा दिलाया । आइंदा ऐसा नही होगा। ना गाड़ी रूकेगी और ना ही समय। बाकी पुरी की पुरी व्यवस्था रूक जाए। अस्पताल की गाड़ी रोक ली जाएगी। आम आदमी की सवारी रोक ली जाएगी। जरूरत पड़ी तो और भी कुछ……. पर, बड़े साहब की गाड़ी नहीं रूकेगी। आगे आगे हूटर बजाती हुई गाड़ी, उसमें बैठे हुए हमारे ही भाई बंधु बड़ा सा डंडा निकाल सब कुछ रोक देने का स्पष्ट संदेश देते हुए। किसकी मजाल जो संदेश को न समझे। अगर किसी ने थोड़ी सी गुस्ताखी की तो भाइयों के मुंह से दांतों को दबाकर निकले हुए शब्द काफी थे।

बड़े साहब की गाड़ी में साहबअपने व्यस्त समय का सदुपयोग करते हुए, अपनी नज़रें आज़ के अख़बार के पन्नों पर टिकाए हुए , बड़ी ही आत्मसंतुष्टि के साथ इस ख़बर को पढ़ते हुए कि प्रशासन ने तमाम इंतजामात किए हैं ताकि अब ट्राफिक जाम की समस्या ना हो।

खैर!आज़ देर से दफ्तर आने की वज़ह से कईयों को अपने अपने साहबों के कोप का शिकार होना पड़ा।पर, एक बात आज़ वक्त नहीं रूका। 

काश ! वक्त इसी तरह चलता रहे। बड़े साहब ख़ुश रहें। संतुष्ट रहें।

मनीश वर्मा ‘ मनु ‘

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