Manu Kahin

रविवारीय: कोरोना के बाद अब ‘गॉब्लिन मोड’

‘गॉब्लिन मोड’ कुछ इस तरह के मिजाज के लोगों के बारे में बातें करता हुआ, जिनका मानना है – मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्ज़ी! बिल्कुल ही प्रचलित हुआ है यह शब्द, जो धुआंधार प्रयोग हो रहा है या यूं कहें प्रयोग में लाया जा रहा है।

शायद आप इसे कोरोना का फॉलआउट भी कह सकते हैं। बच्चे तो खैर बच्चे, क्या युवा और बड़े कोरोना की वज़ह से सभी घरों में एक लंबे अर्से तक नज़रबंद रहे। कुछ ना कुछ तो असर दिखना था।इसीलिए एक ऐसा ही शब्द है ‘गॉब्लिन मोड‘, जिसका प्रयोग बस व्यापक रूप से अभी अभी ही गति पकड़ रहा है। ये पहली बार है जब लोगों ने इसे ‘वर्ड ऑफ़ द ईयर’  चुना है।

अमेरिकी भाषाविद् और लेक्सिकोग्राफर बेन ज़िमर ने ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द इयर’ की घोषणा करते हुए कहा: “गॉब्लिन मोड वास्तव में मौजूदा समय की मान्यताओं को ज़ाहिर करता है. ये यह निश्चित रूप से 2022 की अभिव्यक्ति है। ये जनता को पुराने सामाजिक मानदंडों को दरकिनार करके नए तरीकों को अपनाने का मौका देता है।”

इस अभिव्यक्ति के मतलब के लिहाज से इस तरह के लोग अपनी मर्ज़ी के मालिक होते हैं। दुनिया उनके बारे में क्या सोचती है, उसमें उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं। दुनिया से बिल्कुल बेखबर। अपने ही ढंग से जीनेवाले गन्दे- सनदे, सुखवादी लोग।

सत्तर के दशक में एक संस्कृति ने विश्व परिदृश्य पर, बड़े जोरों से अपने पैर पसारे थे – हिप्पी संस्कृति। उस वक्त आई सदाबहार अभिनेता और डायरेक्टर देव आनंद की एक सुपरहिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में भी इस संस्कृति को दिखाया गया था। अपनी धुन में मस्त, जिनका सामाजिक जिम्मेदारियों से कोई वास्ता नहीं, नशे के आदी, अल्हड़ युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हुई थी यह संस्कृति। आज़ पता नहीं क्या हश्र है? यदा कदा ही कहीं दिखते होंगे।

सन् 2022 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने जिन तीन शब्दों को जनता के वोटों के आधार पर अपने में शामिल किया , उसमें जो शब्द, सबसे ज्यादा वोट पाकर लोगों की पहली पसंद बना वो ‘गॉब्लिन मोड’ ही था। वोटिंग में शामिल लगभग 93% लोगों ने इस शब्द को पसंद किया। क्यों नहीं पसंद करें इसे।आखिरकार अल्हड़ , मस्त और जिम्मेदारियों से मुक्त ज़िन्दगी किसे पसंद नहीं होती। समाज के आशाओं के विपरित चलना और अपनी इमेज खुद बनाना बहुत लोग पसन्द करते हैं।

पर, हां। एक बात युवाओं के लिए, मस्त रहें, बिंदास ज़िन्दगी जीएं, पर आपकी मस्ती और अल्हड़पन की दिशा और दशा सार्थक और पाज़िटिव होनी चाहिए। कल के भविष्य हैं आप। आप यूं अगर जिम्मेदारियों से भागेंगे तो क़यामत आ जाएगी।

यही बात उम्र दराज लोगों के लिए भी कि आपको बाकियों के लिए पथप्रदर्शक बनना है। कोरोना से एक लम्बी जंग के बाद खुले में सांस लेना तो बनता है। पर यूं ‘गॉब्लिन मोड’ में जाने से काम नहीं चलेगा। अपनी मनमानी आखिर कब तक? या फिर ‘गॉब्लिन मोड’ के हिसाब से ज्यादा शैतानी आखिर कब तक? सतर्क तो रहना ही पड़ेगा।

मनीश वर्मा ‘मनु’

Share this article:
you may also like