Manu Kahin

रविवारीय: केक की उम्र

म्र आपको बहुत कुछ सीखा देती है।उम्र बढ़ने के साथ ही जब आप दोस्तों से बातें करते हैं तो आपकी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। बातों का जो दौर स्कूल के दिनों में था, जो विषय वस्तु उस वक्त हुआ करती थी, वह कॉलेज के दिनों में शायद नहीं थी। आपकी प्राथमिकताएं बदल गई थीं। बातों का दायरा बढ़ चुका था या यूं कहें बदल गया था।

नौकरी में हालांकि आपके सहकर्मी होते हैं, मित्रता के दायरे में जिन्हें शायद नहीं रखा जा सकता। यहां भी प्राथमिकताएं कुछ और ही होती हैं। मेरे कहने का तात्पर्य है कि आप बदलाव को स्वीकार करते रहते हैं। वैसे भी बदलाव तो प्रकृति का शाश्वत सत्य है।

अब कल की ही बात है। मैं और मेरे एक दोस्त बातें कर रहे थे। अगर बेहद ईमानदारी से कहूँ तो बिना सिर पैर की बातें ही हो रही थी। और यह सारी बातें वाकई आप अपने दोस्तों से और वह भी बचपन के दोस्त से ही कर सकते हैं। 

अब लॉक डाउन की ही बात लीजिये। यह भी एक दौर था जिसने सारे विश्व को झकझोर कर रख दिया।अभी तक इसका खौफ ज़ारी है जिसने एक परिवर्तन ला दिया है ।वैसे भी लॉक डाउन में टाइम पास करने के अलावा और किया भी क्या जा सकता था? ज्यादा समाचार सुनेंगे तो मालूम पड़ेगा कोरोनावायरस पॉजिटिव नहीं हुआ पर डीप डिप्रेशन में ज़रूर चले जाएंगे‌। सारे चैनलों पर एक ही बात।सहमने से अधिक पक सा गया था बेचारा आदमी।लगता था उम्र भर इस दौर से पीछा नहीं छूटेगा।

भाई, वही दूरदर्शन का दौर ठीक था। हम सभी समाचार का इंतजार किया करते थे। समय तय कर रखते थे, समाचार के वक्त आखिर करना क्या है। समाचार तो सुनना ही है। बाद में एक चैनल और आया ‘डीडी मेट्रो’ भाई साहब एंटीना सही करते-करते ही कार्यक्रम खत्म हो जाया करता था। एक दौर वह भी था। एक दौर आज़ का भी है। चैनलों की बाढ़ सी आ गई है। पर एक बात है कल एंटीना के पीछे पीछे भागते थे, आज प्रमाणिकता के पीछे दौड़ रहे हैं। हमारा दौड़ना नहीं रुका है। दौड़ते हुए रहना ही शायद नियति बन गई है हमारी।

अब देखिए ना कहां से शुरू किए थे और भागते हुए कहां से कहां पहुंच गए। खैर! बातें दो दोस्तों के बीच हो रही थी। बातचीत चल रही थी जन्मदिन की स्वर्ण जयंती मनाने की। मैंने कहा, भाई मना लो अपनी उम्र की स्वर्णजयंती। कल को किसने देखा है। हम कहां रहेंगे। बच्चे कहां रहेंगे। आज के इस भौतिकता भरी दुनिया में किसी का क्या भरोसा। ई-कॉमर्स का जमाना है सब कुछ मतलब सब कुछ अमेजॉन फ्लिपकार्ट आदि आदि पर उपलब्ध है। बच्चों ने एक बढ़िया सा एक अदद केक और गिफ्ट ई- कॉमर्स के द्वारा भेज देना है। यह जन्मदिन या कोई और दिवस भी हो सकता है। बहुत हुआ तो एक प्यारे से बहाने के साथ वीडियो चैट या फिर स्काइप पर बातें हो जाएंगी। औपचारिकताएं ही तो निभानी हैं।

पर, कहीं अगर गोलार्ध का चक्कर हुआ तो वह भी शायद मुश्किल हो ।और हम अपने आप को और अपनी अर्धांगिनी को या यूं कहें एक दूसरे को बार-बार यह समझने और समझाने की कोशिश करेंगे ‘देखा हमारे बच्चे हमारा कितना ख्याल रखते हैं’ । हमारा जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह मुबारकबाद देना कभी नहीं भूलते‌। कितना बढ़िया केक भेजा है।गिफ्ट भी बड़ा प्यारा और हमारे पसंद का ही है। कितना ख्याल रखते हैं वे हमारा। समय मिलता तो जरूर आते। आखिर बच्चे हैं हमारे । जरूर कोई काम निकल आया होगा तभी नहीं आ सके।

पर हम दोनों पति-पत्नी वाक़िफ हैं सच्चाई से। सच्चाई को कैसे झूठला सकते हैं। बहुत मुश्किल है मन को समझाना। आप दोनों की आंखों की भीगती हुई कोर और टूटती और लड़खड़ाती आवाज पुरी सच्चाई बयां कर रही है।

– मनीश वर्मा ‘मनु’

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