2023 का पहला दिन। आज से दिन ही नहीं साल भी बदल गया है। सभी अपने अपने तरीके से, दिलों जान से नए साल के स्वागत की तैयारी में लगे हैं। पर, क्या हम भारतीयों का नया साल एक जनवरी से शुरू होता है ?
वैसे बचपन से ही हम सभी नए साल का स्वागत एक जनवरी को ही करते हैं। वो अहले सुबह ठंड में उठना और दोस्तों के साथ नववर्ष मनाना। वो दिन भी याद है। बहुत छोटे थे हम। मां और पिताजी के संग सपरिवार नववर्ष मनाते थे। अब तो यह ग्लोबल हो गया है। 31 दिसंबर की रात जैसे ही घड़ी की सूइयों ने बारह बजाए ,लोग बाग सड़कों पर उतर एक दूसरे को नए साल की बधाईयां देते नजर आने शुरू हो जाते हैं। हमें तो बस इंतजार रहता है 31 दिसम्बर की रात बारह बजने का। सारी सीमाएं टूट जाती हैं। सारे बंधन खत्म हो जाते हैं।
खैर! जब कोई पड़ोसी देश हमारी सीमाओं पर घुसपैठ करता है तो हमारी देशभक्ति बल्लियों उछलने लगती है। ऐसा लगता है मानो हम अगर वहां होते तो शायद वर्षों से चला आ रहा सीमा विवाद मिनटों में हल हो जाता। सोशल मीडिया पर देशभक्तों की प्रेरक बातें निःसंदेह हमारे जवानों के हौंसले बुलंद कर दिया करती हैं। हमारा अपना संविधान है। हमारे अपने पर्व त्यौहार हैं। बड़ी ही समृद्ध हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
कोरिया, ईरान यहां तक कि चीन भी एक जनवरी को नववर्ष नहीं मनाता है। मेरी बातों का कृपया गलत अर्थ ना लगाया जाए। मेरी भावनाओं और अपनी मातृभूमि के प्रति मेरी प्रेम को समझें। हममें से कइयों को तो यह मालूम भी नहीं होगा कि हमारा नया साल कब मनाया जाता है।
दो सौ वर्षों की गुलामी दिल और दिमाग से बहुत कुछ बदल देने के लिए काफी होती है। एक लंबे अर्से तक गुलाम थे हम। शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी हमें गुलाम बना दिया गया था। हमारे दिल और दिमाग दोनों ही पर हमारा वश शायद नहीं रहा था।
ग़लत हैं ये बातें। कोरी बहानेबाजी है।हमने अपने आप को भूला दिया। अपनी संस्कृति की बलि चढ़ा दी।
मेरी जानकारी कहती है कि हमारे लिए, हम भारतीयों के लिए भी नया साल है। हां,यह बात जरूर है कि चंद्रमा के कैलेण्डर और सौर कैलेण्डर के मुताबिक थोड़ा अंतर कहीं कहीं आ जाता है। हम भारतीय अमुमन नई फसलों के कटने पर और विक्रम संवत की शुरुआत को नया साल मानते हैं। यह तो होना ही है। हमारी सभ्यता और संस्कृति विविधताओं से भरी हुई जो है।
पर, एक बात तो है। हमें तो हमेशा दूसरों की चीजें अच्छी लगती हैं। एक जनवरी को वैश्विक स्तर पर नववर्ष मनाना हमारी मजबूरी है। बाजारवाद ने हमें बुरी तरह से प्रभावित किया है। ना चाहते हुए भी हम उसके गुलाम तो बन ही गए और बाजारवाद के वाहक भी। शुभकामनाएं नववर्ष के आगमन की हम भी आपको देंगे। उसके स्वागत में पलक पांवड़े भी बिछाएंगे। आप मुझे हिप्पोक्रेट कह सकते हैं। मैं ‘ऑड मैन आउट’ नहीं होना चाहता। सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखता हूं। पर कहीं ना कहीं अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता मुझे अपनी ओर खींचती है और मैं ना चाहते हुए भी मजबूर हूं।
हम सभी अपनी खट्टी-मीठी, तीखी-कड़वी तमाम यादों के साथ साल 2022 को अलविदा कह चुके हैं और एक नए संकल्प और ढेर सारी उम्मीदों के साथ स्वागत करते हैं नववर्ष 2023 का !
– मनीश वर्मा ‘मनु’