सड़क मार्ग से यात्रा करना हमेशा से ही एक बढ़िया,सुखद और सार्थक अनुभव हुआ करता है। हो सकता है कि जहां की दुरी आप आठ घंटे में तय करते हैं या फिर फ्लाइट से कुछ मिनटों या घंटे में वहां सड़क मार्ग से आपकी यात्रा थोड़ी लंबी और थकान वाली हो सकती है। उबाऊ तो खैर, बिल्कुल नहीं। पर, आपकी आंखें और आप जो अनुभव करेंगे वो इन सारी बातों को बिल्कुल ही नज़र अंदाज़ कर देगी। एक अलग ही आनंद है इसमें।एक अलग ही दुनिया है यह। लोगों को जानना, उनके रीति-रिवाजों को जानना। जगह-जगह की खासियत को जानना, सबके लिए एक भरपूर मौका होता है।
सड़क मार्ग से कोलकात्ता जाने के क्रम में जब आप बोधगया से निकलकर डोभी पहुंचते हैं तो आप शेरशाह सूरी के द्वारा बनवाए गए ग्रैंड ट्रंक रोड @ नेशनल हाईवे 2 @ AH1 के नाम से जाना जाता है, पकड़कर कोलकात्ता की ओर बढ़ते हैं। बिहार की सीमा से कुछ दूर आगे बढ़ते ही झारखंड की सीमा में प्रवेश करते ही चौपारण नाम की एक जगह है। नेशनल हाईवे के दोनों ओर बसा हुआ एक छोटा सा कस्बाई इलाका । नेशनल हाईवे के दोनों ही तरफ लगभग एक किलोमीटर की दूरी तक ख़ालिस देशी छेना और चीनी की चाशनी में डूबी हुई खीर मोहन @ खीर मोहना मिठाइयों की एक श्रृंखला। दुकानों के नाम भी बड़े ही आकर्षक।कोई खानदानी खीर मोहन रखे हुए है तो कोई जय विष्णु , न्यू विष्णु। कोई ग़ौरी गंगा तो कोई प्रिंस या फिर वैष्णवी फेमस खीर मोहन। सभी के अपने अपने दावे। शुद्धता , स्वाद और गारंटी के साथ। सभी इसे स्थानीय मिठाई होने का दावा करते हैं।जब भी मेरा कोलकात्ता सड़क मार्ग से आना जाना होता था तो मैं अक्सर रास्ते में इसे देखता था। कई मर्तबा मैंने इसे खरीदा और घर के लिए भी पैक करवाया। स्वाद बढ़िया। पैकिंग आपकी सुविधा और पसंद के अनुसार। आप चाहें तो प्लास्टिक का डब्बा या फिर छोटे छोटे मिट्टी के बर्तन में। इस बार मैंने इसके बारे में थोड़ा अधिक जानने की कोशिश की। मेरा अपना मानना है कि हर चीज़ के पीछे उसका एक अपना अतीत होता है। उसकी अपनी एक सार्थकता होती है। आखिर क्यूं गया (बिहार) अपने तिलकुट की सोंधी खुशबू के लिए विख्यात है। क्यूं सिलाव (राजगीर के पास) अपने खाजे के मिठास के लिए प्रसिद्ध है। कुछ तो बात रही होगी। एक छोटा सा इतिहास, एक अतीत रहा होगा।
खीर मोहन @ खीर मोहना दरअसल इसकी शुरुआत लगभग १२ वीं सदी में उड़ीसा से हुई। वहां इसे खीर मोहना भी कहा जाता है। यह छेने की बनी हुई, चीनी के चाशनी में डुबोई हुई एक मिठाई होती है जो मुंह में जाकर बिल्कुल घुल जाती है। बंगाल के रोशोगुल्ला से थोड़ा हटकर इस मायने में कि बंगाल का रोशोगुल्ला थोड़ा स्पोंजी और बिल्कुल सफेद रंग का होता है जबकि उड़ीसा का खीर मोहन@ खीर मोहना थोड़ा भुरे रंग का। पर, है दोनों रसगुल्ला ही।
बीच के कुछ सालों में अपने उत्पत्ति को रसगुल्ला, रसोगोला या फिर रोशोगुल्ला एक बड़ा ही विवादित मुद्दा रहा। बंगाल के लोगों के इसकी उत्पत्ति को लेकर अपने अलग दावे थे। उनका मानना था कि रसगुल्ला सर्वप्रथम बंगाल के लोगों ने ही बनाया। उड़ीसा के लोगों का भी ऐसा ही कुछ मानना था कि इसकी शुरूआत उड़ीसा से हुई। भूवनेश्वर और कटक के बीच एक छोटा सा जगह है “पहला”। इस जगह के नाम पर इस मिठाई को लोग “पहला रसागोला” भी कहते हैं। यहां सड़क के दोनों ही ओर लगभग आधे किलोमीटर की दूरी तक खीर मोहन@ खीर मोहना, रसागोला मिठाई की दुकानों की एक श्रृंखला है। इस ” पहला” जगह को उड़ीसा का रसागोला जिला भी कहा जाता है।
इस रसागोला को उड़ीसा के विश्व प्रसिद्ध पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान् लक्ष्मी पर प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है ।
खैर! अब तक तो हम और आप यह देख ही चुके कि किस प्रकार यह मिठाई का मामला दो राज्यों के बीच प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। यह उनके सामाजिक मान सम्मान का भी प्रश्न रहा है। मुकदमेबाजी, बयानबाज़ी तमाम तरह की बाजियों का दौर चला। सर्वप्रथम बंगाल ने अपने बांगालेर रोशोगुल्ला के लिए 2017 में GI Tag लेकर बाजी मारी। उड़ीसा भी क्यूं पीछे रहता भला। 2019 में उड़िया रसागोला@ खीर मोहन@ खीर मोहना के लिए सरकार ने उड़ीसा को भी GI Tag दे दिया। तब जाकर यह विवाद थमा।
चलिए आप और सभी बंगाल और उड़ीसा के रोशोगुल्ला और रसोगोला के विवादों से अपने आप को दूर रखें। खीर मोहन@खीर मोहना का फिलहाल मेरे मनु कहिन के शब्दों के साथ रसास्वादन करें।सड़क मार्ग से यात्रा का भरपूर आनंद लें। जिंदगी को भरपूर जिंए।