Manu Kahin

रिजल्ट आया है

अभी दो-तीन दिन के अंतराल पर ही देश के दो बड़े शैक्षणिक बोर्ड का रिजल्ट आया है। 10वीं और 12वीं के बच्चे इस शैक्षणिक बोर्ड में शिरकत करते हैं। कुछ बच्चों ने आशातीत सफलता पाई, कुछ ने नहीं पाई। कुछ को बहुत बढ़िया मार्क्स आए तो कुछ को नहीं आए। बढ़िया मार्क्स अच्छा लगता है सुनने में और खराब मार्क्स किसे अच्छा लगेगा सुनने में, पर इस बात की कतई गारंटी नहीं है कि अच्छे मार्क्स वाले बच्चे ही जीवन में सफल होते हैं। इस बात में भी दम नहीं है, जिन्हें अच्छे मार्क्स नहीं आए हैं वह जिंदगी में सफल नहीं होंगे। जिनके अच्छे रिजल्ट हुए हैं उन्हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं और जिन्हें अच्छे मार्क्स नहीं आए हैं, मैं उन्हें भी बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ। जीवन में जरूरी नहीं है कि आपको सिर्फ और सिर्फ शैक्षणिक बोर्ड के द्वारा जो अंक आपको मिलते हैं, सिर्फ वही आपके सर्वांगीण विकास में सहायक हो। हां, आपको वह एक पुश जरूर देते हैं।

अहम और विचारणीय बात यह है कि आपकी रुचि, आपके आचार विचार, आपके आसपास का वातावरण, आपके मित्रगण आपकी परवरिश, सभी मिलकर आपको एक संपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करते हैं।

हम एक अजीब सी स्थिति में फंसे हुए हैं। एक किस्म की दौड़ जिसे चूहा दौड़ कहना ज़्यादा मुफ़ीद होगा। हम बस भागे जा रहे हैं बिना आगा पीछा सोंचे हुए। हमारी सारी कवायद यह रहती है कि कैसे हमारे बच्चे क्लास में सबसे ज्यादा नंबर लाएं। और नंबरों का क्या? भाषाओं की परीक्षा में आपको शत् प्रतिशत नंबर आ रहे हैं। शायद भाषाओं के मूर्धन्य विद्वानों को भी भाषा की परीक्षा में शत् प्रतिशत नंबर नहीं आए होंगे।

नंबर बच्चों को आ रहे हैं अथवा नहीं आ रहे हैं? क्या रिजल्ट होगा? और चेहरा हमारा, हम अभिवावकों का, खिलता बुझता रहता है।

एक किस्म का बाज़ार सजा हुआ है। जिसकी जितनी हैसियत वो उतनी ही ज्यादा खरीददारी कर रहा है। जिनकी हैसियत कुछ खरीदने की नहीं है, वो हाशिए पर खड़े हैं। कभी थोड़ा अपनी नज़र को 360 ° पर घुमा कर देखने का कष्ट करें। अगर आप अपने से नीचे वाले को देखकर इतरा रहे हैं तो कोई और आपकी हैसियत पर भी नज़र रखे हुआ है। हम सभी अपनी अपनी हैसियत के अनुसार ही तो काम करते हैं। एक भेंड़चाल में चल रहे हैं।

सितारों के आगे जहां और भी हैं! अभी इश्क़ के इम्तिहान और भी हैं! अल्लामा इक़बाल साहब ने बस इन चंद शब्दों में ही पुरी जिंदगी का फ़लसफ़ा आपको बता दिया।। क्यों और किसकी गुलामी कर रहे हैं!

बाजारीकरण ने हम सबको गुलाम बना कर रख दिया है। हमारे सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई है। हम बाजार के मुताबिक सोचते और समझते हैं। अरे जरा अपने बच्चों से बात करने का वक्त तो निकालें। अगर बच्चे को नंबर कम आया है या आपकी आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं आ पाया है तो इसका मतलब तो यह कतई नहीं कि आप उन्हें मझधार में छोड़ दें। वो किसी काम के नहीं रहे।शैक्षणिक परीक्षाएं और ये नंबर वंबर जो हैं ना वो एक बहुत छोटा सा हिस्सा है ज़िंदगी का। अभी तो जिंदगी शुरू हुई है। अभी तो आगे बहुत से इम्तिहान होने हैं। बहुत दूर जाना है। अभी तो सफ़र की शुरुआत ही हुई है और हम अभी से हार मान बैठे।

कल की तैयारियां करें। कहां आप भी ना आज़ में अटके हुए हैं। आप समझ नहीं पा रहे हैं। आपकी इन बातों का फ़ायदा कोई और उठा ले जा रहा है और आपके हाथों में कुछ नहीं रह पाता है। आपकी हथेलियों के बीच कुछ भी नहीं बचा। चीज़ों को सहेजने की कोशिश करें उन्हें संजो कर रखें नहीं तो ये ना बालू की तरह कब आपकी मुट्ठियों से निकल जाएंगी आपको पता भी नहीं चलेगा और जब पता चलेगा तब भाई साहब बहुत देर हो चुकी होगी।

Share this article:
you may also like
No data found.