पाण्डव फॉल, पन्ना टाईगर रिजर्व के पास ही खजूराहो– पन्ना, राष्ट्रीय राजमार्ग 75 से लगा हुआ एक प्राकृतिक और बेहद ही खूबसूरत और रमणीय जल प्रपात है। इस जल प्रपात की ऊंचाई लगभग 30 मीटर है। बारिश के मौसम में तो यूं लगता है जैसे इसकी खूबसूरती को चार चांद लग गए हों। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
जैव विविधता की दृष्टि से भी यह क्षेत्र अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। जल प्रपात के नीचे एक जलकुंड बना हुआ है जहां जाने के लिए 294 सीढ़ियां बनी हुई हैं। ऊपर से केन नदी का पानी इसी जलकुंड में गिरता है। इस जलकुंड को जब आप ऊपर से देखेंगे तो यह कुछ कुछ दिल का आकार लिए दिखता है। फोटोग्राफी में तो यह बिल्कुल ही स्पष्ट नजर आता है। बस यह जानते ही नौजवानों की टोली जुट जाती है अपने मिशन पर। हालांकि सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऊपर जाना मना है, पर कहां मानते हैं हम। नियमों को ना मानने में हमें थोड़ा सुकून मिलता है। एक प्रकार के आनंद की अनुभूति होती है। जुगाड़ तकनीक भिड़ाया और पहुंच गए वहां जहां जाना मना था।
यह जलकुंड छोटी छोटी मछलियों की नर्सरी भी है, जहां पर मछलियां बड़ी होकर बारिश की बाढ़ में, बारिश की पानी के साथ नीचे मौजूद केन नदी तक जाकर मछलियों के समुदाय की निरंतरता बनाए रखती है। केन नदी दरअसल पहले कर्णावती के नाम से जानी जाती थी। हमारे पुराने शासकों ने जिन्हें कर्णावती नाम के उच्चारण में समस्या आती थी, उन्होंने इसे केन कर दिया, ऐसा यहां के स्थानीय लोगों का कहना है। सच ही रहा होगा। कहां उन्हें हिन्दी की ज्यादा समझ थी। आज भी कहीं ना कहीं वायसराय की टेरिटरी में रहते हैं। यकीन ना हो तो हवाई जहाज के डैनों को थोड़ा ध्यान से देख लें। चलता है भाई, सब चलता है। क्या फर्क पड़ता है।
खैर! सालों भर पानी की उपलब्धता की वजह से यह स्थान हरवक्त, हर मौसम में पक्षियों से भी गुंजायमान रहता है। गर्मी के मौसम में यहां का राजकीय पक्षी दूधराज यहां पाया जाता है। यहां ऊंचे ऊंचे अर्जुन के पेड़ हैं जिन्हें हम ज्यादा अच्छे से जानते हैं। रात्रिकाल में यहां भालुओं की चहल-पहल रहती हैं। पेड़ों पर भालूओं के पंजे के निशान इस बात की गवाही दे रहे थे। रही सही कसर पेड़ों के पास गिरे हुए मधुमक्खियों के छत्तों ने पूरी कर दी।
यहां से निकलने वाले पानी की पाचन शक्ति प्राकृतिक रूप से अधिक होने का भी स्थानीयों लोग दावा करते हैं। स्वाभाविक है। पत्थरों और पहाड़ों से गिरता हुआ पानी खनिजों की उपलब्धता की वजह से स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से अच्छा तो होगा ही।
इस क्षेत्र की धार्मिक मान्यता भी है। कहा जाता है कि वनवास काल में पाण्डव ने यहां निवास किया था। जलकुंड के एक ओर बनी हुई गुफाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं। हालांकि अब गुफाओं में आगे जाने के लिए सुरक्षा की दृष्टिकोण से रास्ते को बंद कर दिया गया है, पर हमारे उत्साही गाइड ने तो हमें यहां तक बताया कि वो इस गुफा में काफी अंदर तक जा चुका है।
यहां पर चूना पत्थर का एक विशिष्ट आकार का स्टेलागमाइट/स्टेलाकटाइट भी उपलब्ध है।
लोगों का कहना है कि 4 सितम्बर 1929 को इसी स्थान पर अमर शहीद राष्ट्रवादी चन्द्रशेखर आजाद ने क्रांतिकारियों के साथ एक गुप्त बैठक की थी । हो सकता है इस तरह की भौगोलिक स्थिति वाली जगह पुलिस से बचकर अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों को काफी रास आती है।
पाण्डव फॉल पर्यटकों के लिए बुधवार का दिन छोड़कर सालों भर खुला रहता है। तो आप जब भी आपका दिल चाहे एक बार वहां जाएं और प्रकृति के सौंदर्य का आनंद उठाएं।