आइए यायावरी के इस एपिसोड में इस रविवार हम आपको लेकर चलते हैं लखनऊ का ऐतिहासिक विलायती बाग़ जो नवाबों के समृद्ध अतीत की खोई हुई कहानी को आज भी बयां करता है। लखनऊ के अंतिम नवाब थे जनाब वाजिद अली शाह। उन्हें अंग्रेजों ने लखनऊ से निर्वासित कर दिया था। इस घटना को घटे हुए लगभग पौने दो सौ साल से भी ज्यादा हो गए हैं फिर भी अगर लखनऊ आज़ भी नवाबों का शहर ही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं।
विलायती बाग का निर्माण बादशाह गाजिउद्दीन हैदर ने 1814-27 के दौरान अपनी प्रिय युरोपीयन बीबी के मनोरंजन एवं समारोह के आयोजन हेतु करवाया था। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण बादशाह नसरुद्दीन हैदर ने ( 1827-32 ) में करवाया था।
सुर्ख़ी चूना और लाखौरी ईंटों से निर्मित यह बाग मूलत: व्यूह संरचना में 200 गुना 200 मीटर के वर्गाकार चारदिवारी से घिरा हुआ था। बाग़ के उत्तर पश्चिमी कोने पर अवध शैली में निर्मित एक भवन है जिसमें दोनों और कक्ष तथा मध्य में आंगन और आंगन के दोनों ओर मेहराब दार बरामदे हैं।
जानकारों का कहना है कि विलायती बाग़ के द्वार पर पच्चीस सीढ़ियां बनी हुई हैं जो कालांतर में जमीन के अंदर छिप गई थी जिसे भारतीय पुरातत्व वालों ने खोज निकाला था। कहा तो यह भी जाता है कि इस बाग से दिलकुशा होते हुए शहर के हृदय स्थल हजरतगंज स्थित शाह नजफ तक एक सुरंग बनी हुई है।
बाग की पश्चिमी दीवार जो अपेक्षाकृत मजबूत एवं ऊंची है के मध्य में एक विशाल प्रवेश द्वार है । प्रवेश द्वार के दोनों और कुछ भवन संरचनाएं थी जो अब नष्ट हो चुकी है । अपने पुराने दिनों में एक से बढ़कर एक देशी और विदेशी पौधों से सजा यह बाग आज़ एक कब्रिस्तान के रूप में नज़र आता । इस बाग़ का एक दरवाजा गोमती नदी के किनारे खुलता था जहां बादशाह अपनी प्रिय युरोपीयन बीबी और विदेशी मेहमानों के संग नदी किनारे बैठ सुकुन भरे पल बिताया करते थे।
विलायती बाग़ लखनऊ की भूली बिसरी कहानियों को अपने अतीत में समेट लखनऊ के समृद्ध अतीत की झलक दिखाता है। यह लखनऊ के इतिहास की यह सबसे उत्कृष्ट और सुन्दर रत्नों में से एक है।
यह बाग़ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो गया था । बाग के दक्षिण पश्चिम कोने में अंग्रेजी द्वारा निर्मित दो कक्ष एवं अन्य संरचनाएं हैं। इसके अतिरिक्त 1857-58 के स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए तीन अंग्रेज़ सैनिकों – हेनरी पी गार्वी, कैप्टन हेली हचिंसन और सार्जेंट एस न्यूमेन की यहां समाधियां भी हैं।
विलायती बाग़ से सटे हुए ही हज़रत कासिम बाबा की दरगाह है। कासिम बाबा सन् 1029 में अरब से यहां आए थे।इस दरगाह पर उर्स के मौके पर श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ उमड़ती है।