Manu Kahin

हिन्दी दिवस

आज १४ सितंबर के दिन हम सभी हिन्दी पखवाड़ा के साथ ही साथ हिन्दी दिवस मना रहे हैं। लगभग हर सरकारी महकमों में आप पाएंगे कि सितंबर माह में कार्यालयों में हिन्दी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की धूम मची रहती है। एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है हिन्दी दिवस। उस दौरान ऐसा लगता है मानो अब से, कार्यालयों में सारा काम हिन्दी में ही होगा। अंग्रेज़ी तो बस, एक दो दिन की ही मेहमान है। अबकी बार तो मानो इसकी विदाई तय है। सभी बड़े जोशों खरोश के साथ हिन्दी को हमेशा के लिए स्थापित करने के लिए , उसे अंगिकार करने के लिए और अंग्रेज़ी की विदाई के अपना पूरा जोर लगाए हुए हैं।


(वैसे बहुत पहले से ही हिन्दी हमारी राजभाषा है।) तमाम बड़े अधिकारी हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं विकास पर व्याख्यान देते हुए मिल जाएंगे। लगभग प्रत्येक सरकारी महकमों में इस अवसर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। पुरस्कार बांटे जाते हैं।


यहां पर प्रसंगवश मैं एक वाकया का जिक्र करना चाहूंगा। उस वक्त मेरी पोस्टिंग अहमदाबाद में थी। सितंबर का महीना चल रहा था। बड़े जोर-शोर से हिन्दी दिवस एवं पखवाड़ा मनाया जा रहा था। अपने अन्य विभागीय साथियों के साथ मैंने भी हिन्दी लेख, लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया था। अब उस दिन देखिए क्या हुआ? प्रतियोगिता में जाने से पहले किसी कारणवश जब मैं हिन्दी अधिकारी के कमरे में गया, तो मैने क्या देखा? उनकी मेज पर शीशे के नीचे, अंग्रेजी में एक कोटेशन लिखा था। मेरे मन में पता नहीं क्या आया मैने उसे याद कर लिया। प्रतियोगिता में मैने उसी कोटेशन के साथ अपनी शुरुआत की। लिखने को तो मैं लिख गया पर, बाद में मुझे डर भी लगा ।


लगा, मुझे नहीं लिखना चाहिए था। पर, अब क्या होना था। पर, जब परिणाम आया तो वो मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं था। मुझे पूरे प्रभार में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था। अब आपके मन में एक स्वाभाविक प्रश्न आ रहा होगा कि मैंने इस वाकये का जिक्र यहां क्यों किया?


इसकी वज़ह है। देखिए मुझे किसी भी भाषा से परहेज नहीं है और न ही उसे जानने और सीखने से कोई गुरेज़ । मेरा तो बस इतना मानना है कि आप जहां भी रहें, जिस पद पर रहें, एक रोल मॉडल की भूमिका में रहें। आप अपने दायित्व एवं भूमिका को पहचानें।


अब इस बात को हमलोग समझें, अपने नज़रिए को बदलें। बच्चों को बखूबी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाएं, पर उन्हें हिन्दी भाषा से जोड़ें, तभी वे भारत की संस्कृति से अपना जुड़ाव महसूस करेंगे। भारतवर्ष में जहाँ हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हैं, बहुतों की मातृभाषा है ये, जहां बहुसंख्यक लोगों के द्वारा हिन्दी बोली जाती हो, वहां हमें हिन्दी दिवस एवं पखवाड़ा मनाए जाने की आवश्यकता, क्यों भला?
कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर तो हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए।

भाषाई एकरूपता तो किसी भी देश के सर्वांगीण एवं सांस्कृतिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश होगा, जहाँ की राजभाषा को हमारी राजभाषा की तरह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ती हो। सफर में कहीं आप हिन्दी उपन्यास या साहित्य पढ़ रहे हों और आपके सामने बैठा हुआ व्यक्ति अंग्रेजी साहित्य या उपन्यास कुछ भी पड़ रहा हो, लोगों का परसेप्शन, उनका नज़रिया बहुत कुछ बयाँ कर देता है। बताने की ज़रूरत नहीं है।

ज़रूरत है इस परसेप्शन एवं नज़रिया को बदलने की । फिर जरूरत ही नहीं पड़ेगी आपको पखवाड़ा और दिवस मनाने की। भाई, राजभाषा है यह। मेरी हमारी, हम सबकी मातृभाषा है। सम्मान की हकदार तो है ही। कहीं ना कहीं एक कमी रह गई। हम इसका भारतीय करण नहीं कर पाए। जरूरत है और बड़े ही शिद्दत के साथ जरूरी है इसका भारतीयकरण । पूरे देश को एक सूत्र में पिरोती है यह।


गर्व से, आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के साथ इस्तेमाल करें।

सभी को दिल की गहराइयों से हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बहुत बहुत बधाई।

✒️ मनीश वर्मा’मनु’

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