कोरोना और चाय की चुस्की! शीर्षक पर मत जाएं। आज़ मनु आपको जीवन के कुछ संजिदा पहलू से रू-ब-रू कराने की कोशिश कर रहा है, जहां अमुमन लोगों का ध्यान नहीं जाता है। लोग उस राह से गुजरते जरूर हैं। उनका सामना भी होता है।पर, किसी कारणवश उनकी दृष्टि वहां नहीं टिकती है।
कोविड १९ ! कहने को तो बात २०१९ की है पर प्रत्यक्ष रूप से इसका प्रकोप २०२० में दिखाई दिया। उस वक्त शायद किसी ने भी इसकी विभिषिका और भयावहता को उस स्तर पर अहसास नहीं किया जितनी २०२१ में कोविड १९ की दूसरी लहर ने अपनी विभिषिका और भयावहता का अहसास कराया। कोई मुरव्वत नहीं। किसी को भी नहीं छोड़ा। पहली लहर में तो इसने बीमार व्यक्ति या फिर एक तय उम्र सीमा पार कर गए लोगों को अपना शिकार बनाया। जिस किसी परिवार ने अपनों को खोया बस वहीं तक बात रही। उस वक्त इसकी तपिश नही महसूस की गई थी। पर, इस दूसरी लहर ने तो वाकई कहर बरपाया। शायद ही कोई घर छूटा हो। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने किसी अपने को नहीं खोया हो। सारे अनुमान, सारे आयाम किसी काम न आया।
मेरा तो मानना है , जो लोग पुरे के पुरे नास्तिक थे।जो भगवान् के अस्तित्व पर तार्किक होकर बहस करते थे, उन्होंने ने भी अपने आप को भगवान् की शरण में छोड़ दिया था।
वैसे , ऐसा नहीं है कि इसका प्रकोप खत्म हो गया है। पर, एक बात तो माननी होगी इसने जीवन जीने का नज़रिया ही बदल दिया है। आपके जीवन दर्शन को इसने एक नया आयाम दिया है। एक नई परिभाषा गढ़ी है।
कोविड-१९ की भयावहता का अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिस शहर में आपका जन्म हुआ। आप पले बढ़े। आपका स्कूल और कॉलेज जाना हुआ, वह शहर अब कुछ बेगाना सा दिखता है। एक अजीब-सी उदासी ने शहर में अपना घर बना लिया है। हर तरफ एक खौफ , एक घबराहट सा माहौल है। अच्छी फीलिंग नहीं हो रही है। मन हमेशा एक अजीब सी आशंका से ग्रसित रहने लगा है। जिस शहर में पढ़ाई के बाद आप नौकरी कर रहे हैं। नौकरी करते हुए लगभग पच्चीस साल हो गए। उस शहर में आपको सोचना पड़ रहा है। किनके साथ समय बिताया जाए। आज की शाम कहां व्यतीत किया जाए। आज़ शाम की चाय/काॅफी का दौर किनके साथ हो। एक अजीब सी समस्या आ खड़ी हुई है ।
कोरोना ने शायद ही कोई घर ऐसा छोड़ा हो जहां लोगों ने किसी अपने को नहीं खोया है। हर व्यक्ति हर परिवार हलकान है इस विभिषिका से। सब कोई डरा और सहमा सा है।
दोस्त मुहिम । आपके साथ पढ़ने वाले ।आपके साथ खेलने वाले अपने काम धंधे और नौकरी की तलाश में पहले ही आपके शहर से दूर जा चुके थे। कुछ के बच्चे अगर शहर से बाहर पढ़ रहें हैं तो वह भी अपने सुविधानुसार बच्चों के साथ है । जो कुछ लोग बचे हुए थे उनमें से अधिकांश को कोरोनावायरस ने अपने चपेटे में ले लिया है। बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है जाएं तो जाएं कहां ! कोविड के पहले के दिनों को अगर हम याद करें तो छुट्टियों का दिन हो , शनिवार और इतवार हो या फिर सप्ताहांत हो । कब और कैसे कहां और किनके मनाना है यह पहले ही तय हो जाता था। लोगों के साथ दिन कब और कैसे कट जाता था पता ही नहीं चलता था । चाय मैं पीता नहीं हूं । पर , एक कहने वाली बात थी। किसी को फोन किया और अपनी तरफ़ से बिना सामने वाले की स्वीकृति लिए बड़ी ही बेतकल्लुफी से कहा आ रहे हैं । आपके साथ एक कप चाय पिएंगे । उधर से भी बड़े ही उत्साह के साथ ज़बाब आता था ।हां आइए ना ! अब तो गुरु , कोरोना ने वह कहर ढाया है कि अब तो सोचना पड़ रहा है कि छुट्टियां किन के साथ बितायी जाए । चाय की चुस्कियों के साथ कौन ऐसा व्यक्ति है जो बड़े ही बेतकल्लुफ़ अंदाज में आपके साथ अपनी बातों को, अपनी सोच को आपके साथ शेयर करेगा।
बहुत ही मुश्किल वक़्त है । दुनिया वैसे ही आभासी हो चली है और हम सभी उसके इस रुप को कहीं न कहीं अंगिकार कर चुके हैं। रही सही कसर कोरोना ने पुरी कर दी। मानवता का एक वीभत्स चेहरा इस दौरान देखने को मिला। बहुत सारे मिथक टूटते नज़र आए। बस लोगों में जान बचाने की आपाधापी मची थी।अब भी वक़्त है शायद हम पर कोई फर्क पड़े।
अभी हम शायद कोविड की गंभीरता का आकलन पुरी तरह से नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा लगता है मानों गवर्नमेंट ने लॉकडाउन लगाया तो कोरोना है । गवर्नमेंट ने लाॅकडाउन हटा दिया तो कोरोनावायरस खत्म। पर वास्तव में ऐसा नहीं है । आपको अभी आनेवाले कुछ समय तक एहतियात बरतना होगा ।आपको इसके साथ जीना सीखना पड़ेगा । एक तय प्रोटोकॉल के साथ इसके साथ कदमताल करना होगा। आपकी थोड़ी सी भी कोताही आपकी जान पर भारी पड़ सकती है। वैक्सीनेशन की शुरुआत हो चुकी है। जितनी जल्दी हम सभी टीका लगवा लें, हमारे और आपके दोनों के सेहत के लिए अच्छा है। भ्रम में ना पड़े। जिंदगी का सवाल है। माना जिंदगी और मौत प्रारब्ध है पर इससे हमारी जिम्मेदारियां खत्म नही हो जाती है। अपने आप की, परिवार की और साथ ही साथ समाज के प्रति भी अपनी भूमिका को समझने की जरूरत है।
मनु कहिन
१५/०६/२०२१