साल 2023 की आखिरी तारीख, आखिरी दिन, सप्ताह और महीना। ऐसा लगता है मानों हम किसी किताब के पन्ने पलट रहे हैं और अब बस आखिरी पन्ना ही शेष है। अब कल से दिन ही नहीं साल भी बदल जाने वाला है। सभी अपने अपने तरीके से जाते हुए साल 2023 को अलविदा कहने की पुरजोर तैयारी में लगे हैं। हम सभी दिलों जान से नए साल के स्वागत की तैयारी में लगे हैं, पर हम भारतीयों का नया साल एक जनवरी से तो नहीं शुरू होता है। चंद्रमा के कैलेण्डर और सौर कैलेण्डर में भी काफी अंतर हैं।
हम भारतीय अमूमन नई फसलों के कटने पर और विक्रम संवत् की शुरुआत को नया साल मानते हैं।हमारे अपने पर्व त्यौहार हैं। बड़ी ही समृद्ध और गौरवशाली हमारी सांस्कृतिक विरासत है। कोरिया, ईरान यहां तक कि चीन भी एक जनवरी को नववर्ष नहीं मनाता है।पर हम में से कइयों को तो यह मालूम भी नहीं होगा कि हमारा नया साल कब मनाया जाता है। क्या हमने अपने आप को भूला दिया है? क्या अपनी संस्कृति की बलि चढ़ा दी है? आखिर सदियों की ग़ुलामी दिल और दिमाग से बहुत कुछ बदल देने के लिए काफी होती है। एक लंबे अर्से तक गुलाम रहे हैं हम। शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि क्या सांस्कृतिक तौर पर भी हमें गुलाम बना दिया गया था?
पर देखा जाए तो अब तो एक जनवरी को नववर्ष मनाने का रिवाज़ वैश्विक हो गया है। आप शायद यह भी कह सकते हैं कि बाजारवाद ने हमें बुरी तरह से प्रभावित किया है। ना चाहते हुए भी हम उसके गुलाम तो बन ही गए और बाजारवाद के वाहक भी। कहीं ना कहीं अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता , विरासत और अपने देश का गौरवशाली अतीत मुझे अपनी ओर खींचता है, और मैं ना चाहते हुए भी मजबूर हूँ। हमें अपने आप पर, अपनी संस्कृति और विरासत पर गर्व करना सीखना होगा।
पर फिर भी मैं ‘ऑड मैन आउट’ नहीं होना चाहता। आप आप मुझे ” हिप्पोक्रेट” कह सकते हैं, क्योंकि मैं सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखता हूँ। शुभकामनाएं नववर्ष के आगमन की हम भी आपको देंगे। उसके स्वागत में पलक पांवड़े भी बिछाएंगे। आखिर एक बात है जो हमें औरों से अलग करती है – हमारी सभ्यता और संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है। एक जनवरी को वैश्विक स्तर पर नववर्ष हम पूरे हर्षोल्लास से मनाते हैं। देखा जाए तो बचपन से ही हम सभी नए साल का स्वागत एक जनवरी को ही करते आए हैं। वो अहले सुबह ठंड में उठना और दोस्तों के साथ नववर्ष मनाना। नववर्ष के दिन पिकनिक मनाने की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाया करती थी। वो मिलजुलकर पैसे इकट्ठा करना। क्या ही आनंद के दिन थे वो। आज पैसों की दिक्कत नहीं है। एक दूसरे से मांगने की भी जरूरत नहीं है, पर वो आनंद कहां?
पुरानी बातें हैं। तब सोशल मीडिया का बोलबाला नहीं था। टेलीफोन भी घर घर नहीं हुआ करता था। बस रात बारह बजते ही हम अपने अपने घरों से बाहर निकल एक दूसरे को नए वर्ष की शुभकामनाएं दिया करते थे। अब तो वो सब गए दिनों की बातें हो गई हैं। अब तो 31 दिसंबर को ठीक रात के बारह बजे जब पुराना साल जा रहा होता है, और हम सभी नए साल में प्रवेश कर रहे होते हैं तो सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर हम अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे होते हैं। कुछ समय के लिए मानों वक्त ठहर सा जाता है।
पहले तो जैसे ही 31 दिसंबर की रात घड़ी की सूई ने बारह बजाए, लोग बाग सड़कों पर उतर एक दूसरे को नए साल की बधाईयां देते नजर आने शुरू हो जाते थे। हमें तो बस इंतजार रहता था सिर्फ 31 दिसम्बर की रात बारह बजने का। हम सभी नववर्ष की पूर्व संध्या पर दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखते हुए बारह बजने का इंतजार करते थे। अब बहुत कुछ है हमारे पास। समय बिताने के तमाम साधन मौजूद हैं, पर वो आनंद अब फिर कहां? आनंद के मायने शायद बदल से गए हैं।
आइए हम सभी अपनी खट्टी-मीठी, तीखी-कडवी तमाम यादों के साथ साल 2023 को अलविदा कहें! आइए , एक नए संकल्प और ढेर सारी उम्मीदों के साथ स्वागत करें नववर्ष 2024 का!