Manu Kahin

बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ धाम मंदिर के पश्चिम मुखी दरवाजे का रहस्य!

स रविवारीय में हम बातें करते हैं बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ धाम मंदिर की जिसकी पहचान और प्रसिद्धि स्थानीय स्तर पर तो बहुत ज्यादा है पर, बाहर के लोगों इसके बारे में जानकारी बहुत कम या लगभग नहीं है। जब हम वहां पहुंचे तो मंदिर के जिर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण का काम जोरों से चल रहा था।

बिहार की राजधानी पटना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर, बक्सर जिले के ब्रह्मपुर में नेशनल हाईवे से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ धाम मंदिर। भगवान भोलेनाथ को समर्पित यह मंदिर भारतवर्ष के प्राचीन मंदिरों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव महापुराण की रुद्र संहिता में यह शिवलिंग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। यही कारण है कि इसे मनोकामना महादेव भी कहा जाता है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का जिक्र आया है। कहते हैं भारत का कोई भी शिव मंदिर पश्चिम मुखी नहीं है सिवाय इस मंदिर के। अपने आप में अजूबा है यह मंदिर। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम मुखी है।

जनश्रुति के अनुसार जब महमूद गजनवी पश्चिम से मंदिरों को तोड़ता हुआ यहां आया तो यहां के स्थानीय लोगों ने उसे इस मंदिर को यह कहते हुए तोड़ने से रोकने की कोशिश किया कि मंदिर को तोड़ने से बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ तुम्हारे ऊपर नाराज़ हो जाएंगे और तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। इस बात को सुनकर महमूद गजनवी ने कहा वो सुबह इस मंदिर को आकर ज़रूर तोड़ेगा। देखें तुम्हारे बाबा में कितनी शक्ति है। सुबह जब गजनवी अपने लोगों के साथ मंदिर तोड़ने के लिए आया तो उसने देखा कि मंदिर का दरवाजा रात में पूरब मुख से पश्चिम मुख का हो गया है। गजनवी यह चमत्कार देख यहां से वापस हो गया।

कुछ ऐसी ही बात यहां के स्थानीय लोग मुग़ल सेनापति कासिम अली खान के बारे में करते हैं। रात में जब उसके सैनिकों ने मंदिर के दरवाज़े को पूरब मुख देखा था पर, सुबह उन्होंने इसे पश्चिम मुख देखा।

इसी संदर्भ में अंग्रेजों के साथ हुई एक घटना का जिक्र भी आता है। कहते हैं। वे यहां रेलवे लाइन बिछाना चाहते थे। बाबा की वजह से वे यहां रेलवे लाइन नहीं बिछा सके। बाबा ने यहां के पुजारी को सपने में आकर ऐसा करने से मना कर दिया था।

खैर! सच्चाई कुछ भी हो पर, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मंदिर की महिमा, आस्था, श्रद्धा और विश्वास के बीच तर्क का स्थान बिल्कुल नहीं। यह हमारी सनातनी परंपरा है। हम आस्था के बीच तर्क को नहीं लाते हैं। लोगों के बीच आस्था का यह आलम है कि सावन के महीने में यहां बाबा को जल अर्पित करने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ता है। यूं तो पूरे साल इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है पर, फाल्गुन और सावन के महीने कुछ खास रहते हैं। सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को जनसैलाब को देखते हुए प्रशासन के द्वारा यहां के स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए जाते हैं।

इस मंदिर के साथ ही जुड़ा हुआ एक तालाब भी है। हालांकि अव्यवस्था की वजह से उसकी हालत बड़ी ही दयनीय है। लेकिन अब इस मंदिर की महिमा को देखते हुए यहां के स्थानीय प्रशासन की पहल पर बिहार सरकार ने इस मंदिर की सुधि लेते हुए पूरे मंदिर और इससे जुड़े तालाब के जीर्णोद्धार  का काम पर्यटन विभाग को सौंप दिया है।

यूं तो स्थानीय स्तर पर इस मंदिर और इस धाम को सभी जानते हैं पर, जरूरत है इसे और अधिक विस्तृत रूप देने की ताकि अधिक से अधिक लोग इस मंदिर के बारे में जानें और बिहार का यह ब्रह्मपुर क्षेत्र वैश्विक स्तर पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बनाए। मंदिरों को हमारी सनातनी परंपरा के धरोहर और धार्मिक विरासत के रूप में देखते हैं। इसे अक्षुण्ण बनाए रखने की जरूरत है।

मनीश वर्मा ’मनु’

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